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भारतीय रुपये का निकला दम, पहली बार कमजोर होकर 85 के पार, क्‍यों बढ़ गई टेंशन?

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नई दिल्‍ली:

भारतीय रुपये में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज आई है। गुरुवार को भारतीय मुद्रा लुढ़ककर 85 रुपये प्रति डॉलर के नीचे बंद हुई। यह रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में 14 पैसे की गिरावट के साथ रुपया 85.08 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर पहुंच गया। कारोबारियों के अनुसार, पहली बार रुपया 85 के स्तर से नीचे गया। अमेरिकी फेडरल रिजर्व (FED) के 2025 के अनुमानों में बदलाव के चलते उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव बढ़ा। इससे रुपये में भी गिरावट आई। रुपये के 85 के पार जाने से चिंता बढ़ गई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौती है। FED के फैसले का असर दुनिया भर के बाजारों पर दिख रहा है।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया गुरुवार को 14 पैसे टूटकर 85 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया। कारोबार के अंत में यह 85.08 (अस्थायी) प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि रुपया पहली बार 85 के स्तर को पार कर अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के 2025 के लिए अपने अनुमानों को समायोजित करने से भारतीय रुपये सहित उभरते बाजार की करेंसी पर दबाव पड़ा। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अनुमान के मुताबिक प्रमुख ब्याज दर में 0.25 फीसदी की कटौती कर इसे 4.5 फीसदी कर दिया है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया कमजोर रुख के साथ खुला और डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर के पार चला गया।

कौन से फैक्‍टर्स ने डाला असर?
आयातकों की ओर से डॉलर की मांग, विदेशी पूंजी की निकासी और घरेलू शेयर बाजारों में नरमी के रुख के बीच निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई। रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 85.08 प्रति डॉलर (अस्थायी) के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ जो पिछले बंद भाव से 14 पैसे की गिरावट है। रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.94 पर बंद हुआ था।

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.13 फीसदी की गिरावट के साथ 107.88 पर रहा। अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 0.05 फीसदी की गिरावट के साथ 73.35 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा। शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बुधवार को बिकवाल रहे। उन्होंने शुद्ध रूप से 1,316.81 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

कमजोर रुपये का मतलब क्या है?
डॉलर मजबूत, रुपया कमजोर: इसका सीधा सा मतलब है कि डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य कम हो गया है। दूसरे शब्दों में, अब एक डॉलर खरीदने के लिए आपको पहले से ज्यादा रुपये देने होंगे।

महंगाई बढ़ सकती है: जब रुपया कमजोर होता है तो विदेश से आयात होने वाले सामान महंगे हो जाते हैं। इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है। खासकर पेट्रोल, डीजल जैसे उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जो आम लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।

विदेशी निवेश कम हो सकता है: जब रुपया कमजोर होता है तो विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से हिचकिचा सकते हैं। कारण है कि उन्हें लगता है कि भविष्य में रुपये का मूल्य और कम हो सकता है, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता है।

ब्याज दरें बढ़ सकती हैं: रुपये को मजबूत करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं। इससे लोगों को लोन लेना महंगा हो जाएगा और कारोबार पर भी असर पड़ेगा।

क्यों होता है ऐसा?
विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति: अगर विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो निवेशक अपने पैसे को सुरक्षित निवेश में लगाते हैं, जैसे कि डॉलर। इससे रुपये पर दबाव बढ़ता है।

कच्चे तेल की कीमतें: कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत का आयात बिल बढ़ जाता है और रुपये पर दबाव पड़ता है।

विदेशी मुद्रा भंडार: अगर देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है तो रुपये को सपोर्ट करने के लिए कम पैसे होते हैं।

सरकारी नीतियां: सरकार की कुछ नीतियां भी रुपये पर असर डाल सकती हैं।

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