भेल भोपाल।
बीएचईएल के करीब 5 हजार कर्मचारी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली पिपलानी बचत बाजार स्थित बीएचईई थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट को—ऑपरेटिव सोसायटी में सत्ता के खेल के अजीबो—गरीब नमूने देखने को मिल रहे हैं। हालात यह हो गए हैं कि सत्ता में बैठे संचालक मंडल और अध्यक्ष गहरे संबंधों के लिए चर्चाओं में रहे, उन्हें अचानक क्या हो गया कि वे एक दूसरे के दुश्मन बन गए। वहीं विपक्ष में बैठे अध्यक्ष और संचालक मंडल के बीच ऐसा कैसा प्यार बढ़ गया कि वह दोस्त बन गए।
इस खेल की कहानी आज भी भेल कारखाने में चर्चा का विषय बनी हुई है। 21 अगस्त 2025 को अध्यक्ष ने अपने कमरे में ताला डाल दिया था। बस यहीं से विवाद का दौर शुरू हो गया। दरअसल डायरेक्टर आशीष सोनी व राजमल बैरागी पिछले पौने तीन साल से कैबिन न होने के कारण अध्यक्ष के कमरे में ही बैठते थे। अचानक अध्यक्ष द्वारा कमरे में ताला डाल देने से दोनों ही नाराज हो गए। उन्होंने ताले पर ताला जड़ दिया। अध्यक्ष आए उन्होंने इस ताले को तुड़वाया दिया।
विवाद बढ़ता चला गया। अध्यक्ष बसंत कुमार ने मीडिया के सामने नए पदाधिकारियों की घोषणा कर दी व पुराने को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इधर उपाध्यक्ष राजेश शुक्ला ने अध्यक्ष के कमरे में बैठना शुरू कर दिया। फिर अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 8 सितंबर को लेकर आए, लेकिन कोरम पूरा नहीं होने के कारण स्थगित करना पड़। 9 सितंबर को अध्यक्ष ने नए पदाधिकारियों की घोषणा कर उन्हें वित्तीय अधिकार दे डाले।
यानि विपक्ष के डायरेक्टर दीपक गुप्ता, निशांत नंदा, कमलेश नागपुरे, राज कुमार ईडापाची और किरन को अपने पक्ष में लेकर नए मंत्रिमंडल का गठन कर डाला। दोनों पक्षों ने नियम कायदों का हवाला देते हुए अपने आप को सही ठहराया। इससे संस्था के कर्मचारी सदस्यों ने हड़कंप मचा हुआ है।
साफ जाहिर है कि सत्ता पक्ष के डायरेक्टरों ने सत्ता से बाहर करना रास नहीं आ रहा है। वहीं कभी अध्यक्ष के घोर विरोधी रहे डायरेक्टर सत्ता सुख में शामिल करना किसी को गले नहीं उतर रहा है। खास बात यह है कि यह समझ से बाहर है कि अध्यक्ष और सत्ता पक्ष के डायरेक्टर का आपसी मन मुटाव आज तक सार्वजनिक नहीं हो पाया। कोई भी नहीं बता पा रहा है कि इस लड़ाई का खेल ताला बंदी तक कैसे पहुंच गया।
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मजे में हैं अध्यक्ष
दो बार से अध्यक्ष पद पर बने हुए बसंत कुमार के मजे ही मजे हैं। पहले चुनाव में वह कमलेश नागपुरे के साथ मिलकर चुनाव लड़े और अध्यक्ष भी बने। फिर विवाद गहराया तो वह राम नारायण गिरी की पैनल में शामिल होकर चुनाव लड़े और फिर अध्यक्ष बन गए। हालांकि पिछले चुनाव में श्री गिरी डायरेक्टर नहीं बन पाए थे। अब पौने तीन साल में ही श्री कुमार अपने घोर विरोधी रहे डायरेक्टरों से हाथ मिलाकर पुन सत्ता पर काबिज हो गए।
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अगली बार नहीं रहेंगे अध्यक्ष
बसंत कुमार अगला चुनाव डायरेक्टर का लड़ तो सकते हैं, लेकिन दो टर्म पूरे होने के कारण वह अध्यक्ष नहीं बन पाएंगे। वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह अलग बात है। वैसे भी वह भेल प्रशासन से अधिकारी वर्ग में आते हैं।
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पिछले चुनाव में 9 डायरेक्टर हारे
इसी तरह के विवादों के चलते पिछले चुनाव में भेल के कर्मचारी सदस्यों ने 11 में से 8 डायरेक्टरों को हार का स्वाद चखा दिया था। इनमें से सिर्फ बसंत कुमार, राजेश शुक्ला और कमलेश नागपुरे ही जीत पाए थे। जबकि डायरेक्टर गौतम मोरे, सतेंद्र कुमार, संजय गुप्ता, भीम धुर्वे, श्री गिरी और राजकुमार सैनी चुनाव हार गए थे जबकि पिछले डायरेक्टर आलोक वर्मा और श्रीमती टोप्पो चुनाव नहीं लड़ पाए थे।
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दोस्त—दोस्त न रहा, प्यार—वार न रहा
एक फिल्मी गाने की तर्ज पर भेल कर्मचारी थ्रिफ्ट से जुड़े इस मामले को लेकर चर्चा करते नजर आ रहे हैं। दरअसल जिनके समर्थन से सत्ता आई थी और आज उन्हें धोखा मिला सत्ता सुख से वंचित रखा तो विपक्ष में बैठने के बाद वह यह गाना गुनगुना रहे हैं। दोस्त—दोस्त न रहा, प्यार—वार न रहा। जिंदगी हमें तेरा ऐतबार न रहा।