ग्वालियर:
मध्य प्रदेश का ग्वालियर-चंबल, जो कभी डकैतों के लिए कुख्यात था, अब बदल रहा है। बीहड़ अब पर्यटन स्थल बन रहे हैं और फिल्मों की शूटिंग हो रही है। लेकिन एक पुराना कानून, जिसे ’11/13 डकैती अधिनियम’ भी कहा जाता है, अभी भी लागू है। इस कानून की वजह से पिछले एक साल में करीब 106 लोग डकैती के आरोप में फंस गए हैं।
डकैतों के लिए बना कानून
यह कानून डकैतों पर लगाम लगाने के लिए बना था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल मोबाइल छीनने, अपहरण और बलवा जैसी घटनाओं में हो रहा है। कानून के जानकारों का मानना है कि इस कानून को खत्म कर देना चाहिए। ग्वालियर के आईजी का कहना है कि जिस तरह के अपराध होते हैं, उसी हिसाब से इस कानून का इस्तेमाल किया जाता है। इस कानून को खत्म करने के बारे में लोगों से राय मांगी गई है।
एक समय पर कुख्यात था चंबल
चंबल में डकैत अब नहीं हैं। कुछ जेल की सलाखों के पीछे हैं तो कुछ सजा काट कर बाहर आ चुके हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं। हालांकि इनके लिए साल 1981 में बनाई गई 11/13 डकैती अधिनियम की धारा अभी भी जिंदा है। यह कानून 1981 में डकैती, लूट और अपहरण जैसी घटनाओं को रोकने के लिए बनाया गया था। उस समय ग्वालियर-चंबल में ऐसी घटनाएं आम थीं।
अब छोटे-मोटे अपराधों में हो रहा इस्तेमाल
इस कानून का सबसे बड़ा असर यह है कि अब इसका इस्तेमाल छोटे-मोटे अपराधों में भी किया जा रहा है। मोबाइल छीनना, झगड़ा करना या फिर छोटा-मोटा अपहरण, इन सब मामलों में भी पुलिस इसी कानून का सहारा ले रही है। कानून के जानकार और बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि इस कानून को अब खत्म कर देना चाहिए। यह कानून अब अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है। यह कानून IPC-1860 के साथ इस्तेमाल हो रहा है। इस कानून के तहत आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलती। यही वजह है कि पुलिस इसका इस्तेमाल छोटे-मोटे मामलों में भी करती है।
कहां लागू है ये कानून
सरकार ने इस कानून को खत्म करने के बारे में लोगों से राय मांगी है। यह कानून अभी ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, श्योपुर, दतिया, रीवा और सतना जिलों में लागू है। देखना होगा कि सरकार इस पर क्या फैसला लेती है।