मॉस्को
रूस पूरी दुनिया में अपनी शक्तिशाली पनडुब्बियों के लिए प्रसिद्ध है। यही कारण है कि सबसे शक्तिशाली नौसेना होने के बावजूद अमेरिका कभी भी सीधे तौर पर रूस से नहीं उलझता है। इसी कड़ी में रूस ने आर्कटिक में आसानी से ऑपरेट होने वाले नेक्स्ट जेनरेशन की आर्कटुरस परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी की पहली डिजाइन को सार्वजनिक किया है। इस डिजाइन को रूस के इंटरनेशनल मिलिट्री-टेक फोरम आर्मी 2022 में लॉन्च किया गया है। आकार में छोटी और नेक्स्ट जेनरेशन की टेक्नोलॉजी से लैस इस पनडुब्बी को रूस के उत्तरी इलाके की रखवाली के लिए बनाया जा रहा है। नेवल न्यूज में रक्षा विश्लेषक एच आई सटन के अनुसार, आर्कटुरस कॉन्सेप्ट को अमेरिका के एफ-22, एफ-35 लड़ाकू विमानों की तरह डिजाइन किया गया है। ऐक्टिव सोनार से इन लड़ाकू विमानों को डिटेक्ट करना आसान नहीं है। ठीक वैसे ही रूस की इस नई पनडुब्बी को भी पानी के भीतर आसानी से ढूंढा नहीं जा सकता है।
रूस की पनडुब्बी दुनिया से काफी अलग
एच आई सटन ने बताया कि दुनिया के कई देश नेक्स्ट जेनरेशन की पनडुब्बियों का निर्माण कर रहे हैं। जर्मनी और नॉर्वे के लिए बनाई जा रही टाइप-212CD पनडुब्बी, यूनाइटेड किंगडम की ड्रेडनॉट-क्लास बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी शामिल हैं। हालांकि, इन पनडुब्बियों का बाहरी ढांचा लगभग एक जैसे ही है। लेकिन, रूस के रुबिन डिजाइन ब्यूरो की नई पनडुब्बी आर्कटुरस में एक नई तरह की एंटी-इकोइक कोटिंग का इस्तेमाल किया गया है। रुबिन ने पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (SLBN) तकनीक में सुधार के कारण पिछले रूसी पनडुब्बी की तुलना में नई वाली के आकार में 20 फीसदी की कमी होने का दावा किया है।
पंप-जेट प्रपल्शन से पनडुब्बी की आवाज होगी गायब
रक्षा विश्लेषक जोसेफ ट्रेविथिक ने द वॉरजोन में लिखा है कि आर्कटुरस पिछले बोरेई-क्लास एसएसबीएन से छोटा प्रतीत होता है, हालांकि इसका हल चौड़ा है। उनका दावा है कि शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और स्वीडन ने भी ऐसी ही दिखने वाली पनडुब्बी का निर्माण किया था, जो अभी संचालन से बाहर हैं। जोसेफ ट्रेविथिक का दावा है कि रूस की इस पनडुब्बी में पंप-जेट प्रपल्शन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह किसी भी अन्य प्रोपेलर की तुलना में अधिक प्रभावी और पनडुब्बी के एक्विस्टिक सिग्नेचर (पानी के अंदर आवाज) को और कम कर सकता है।
बिना शॉफ्ट के बिजली उत्पादन ने मिलेगी अधिक स्पीड
रुबिन ने यह भी कहा कि आर्कटुरस में कंबाइंड प्रपल्शन सिस्टम लगा हुआ है, जिससे पनडुब्बी में बिना किसी शॉफ्ट के बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इससे पनडुब्बी की गतिशीलता और विश्वसनीयता में जबरदस्त इजाफा हो सकता है। रुबिन ने जोर देकर कहा कि जहां स्टील्थ फीचर पनडुब्बियों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता बनी रहेगी, वहीं डिटेक्शन तकनीक भी तेजी से विकसित हो रही है। इसका अर्थ यह है कि इन खतरों से निपटने के लिए सबमरीन स्टील्थ टेक्नोलॉजी भी विकसित होनी चाहिए। चूंकि पनडुब्बियां प्रत्येक नए डिजाइन के साथ और अधित शांत हो रही हैं, ऐसे में एक्टिव लो फिक्वेंसी सोनार पनडुब्बी का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
12 मिसाइल ट्यूब से लैस है यह पनडुब्बी
रूस की बोराई क्लास पनडुब्बी की तुलना में आर्कटुरस में 12 मिसाइल ट्यूब हैं। वहीं, बोराई क्लास में मिसाइल ट्यूब की संख्या 16 है। रुबिन डिजाइन ब्यूरो ने कहा कि पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली मिसाइलों की प्रौद्योगिकी में सुधार होने के कारण मिसाइल डिफेंस को भेदने के लिए कम मिसाइलों को दागने की आवश्यकता हो सकती है। ये मिसाइलें RSM-56 Bulava SLBM की अपग्रेडेड वेरिएंट हो सकती हैं। इस मिसाइल का इस्तेमाल रूस की बोराई क्लास की पनडुब्बियां करती हैं।