डायनासोर के खात्मे का भारत से कनेक्शन, उल्कापिंड नहीं बल्कि ये है अंत का कारण, नई स्टडी में दावा

वॉशिंगटन:

धरती पर सबसे बड़े महाविनाश में डायनासोर का खात्मा माना जाता है। कहा जाता है कि डायनासोर को खत्म करने के लिए एक उल्कापिंड जिम्मेदार है। हालांकि कई ऐसे भी संकेत हैं जो बताते हैं कि उल्कापिंड डायनासोर को विलुप्त करने का असली कारण नहीं हो सकता। लगभग 6.6 करोड़ साल पहले यह उल्कापिंड टकराया था। लेकिन इससे पहले ही धरती की हवा जहरीली होनी शुरू हो गई थी। अंतरर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम की ओर से किए गए विश्लेषण में उल्कापिंड से होने वाली तबाही से पहले के दावों में नए सबूत जोड़े गए हैं।

टीम के मुताबिक वातावरण में तब सल्फर की मात्रा बेहद उच्च स्तर तक पहुंच गई थी। पारे के लेवल पर अध्ययनों के साथ शोध में ज्वालामुखीय गतिविधियों का संकेत देखा गया है, जिससे जलवायु को पर्याप्त नुकसान पहुंचता है। 1991 में ज्वालामुखीय गतिविधियों को डायनासोर के बड़े पैमाने पर खत्म होने के पीछे का कारण मानने से इनकार कर दिया गया था। हालांकि हाल के अध्ययनों में पता चला है कि समय के काफी करीब होने की संभावना महत्वपूर्ण हो सकती है।

धरती के तापमान में गिरावट
ओस्लो यूनिवर्सिटी की भूवैज्ञानिक सारा कैलेगारो और उनकी सहकर्मियों ने अपने पेपर में लिखा, ‘हमारा डेटा बताता है कि इस तरह की ज्वालामुखीय गतिविधि से सल्फर निकला होगा, जिससे बार-बार वैश्विक तापमान में अल्पकालिक गिरावट हुई होगी।’ दरअसल ज्वालामुखी से निकला सल्फर डाई ऑक्साइड वायुमंडल में जाता है और पानी के वाष्प के साथ रिएक्शन करता है। इस वजह से वायुमंडल में एयरोसोल बने होंगे, जो सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर दे थे, जिस कारण धरती पर रोशनी नहीं आती और वह ठंडी रहती थी।

भारत का डायनासोर कनेक्शन
भारत में दक्कन का पठार को ज्वालामुखीय लावा प्रवाह के जमाव के लिए जाना जाता है। शोधकर्ताओं ने इसके ज्वालामुखीय इतिहास और पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए यहां के चट्टानों की जांच की। टीम ने सल्फर की मात्रा को मापने के लिए एक नई तकनीक विकसित की। मॉडल के मुताबिक दक्कन ट्रैप से लगातार निकलने वाला सल्फर उत्सर्जन दुनिया की जलवायु को ठंडा करने के लिए काफी हद तक पर्याप्त था। सिर्फ इसी ज्वालामुखी क्षेत्र से भारी मात्रा में दस लाख घन किमी पिघली हुई चट्टानें निकलीं। मैकगिल यूनिवर्सिटी के भू-रसायनज्ञ डॉन बेकर ने कहा, ‘हमारे शोध से पता चला है कि जलवायु से जुड़ी स्थितियां अस्थिर थीं। बार-बार आने वाली सर्दियां दशकों तक चल सकती थीं, जो संभवतः डायनासोर के विल्प्त होने का कारण थीं।’

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