18.5 C
London
Wednesday, July 2, 2025
Homeअंतराष्ट्रीय'मोदी सरकार खुद को विश्वगुरु और चीन को...', ग्लोबल टाइम्स को क्यों...

‘मोदी सरकार खुद को विश्वगुरु और चीन को…’, ग्लोबल टाइम्स को क्यों लगी मिर्ची?

Published on

नई दिल्ली,

चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी के मुखपत्र माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स को भारत के विश्वगुरु कहलाने से मिर्ची लगी है. ग्लोबल टाइम्स ने एक ऑपिनियन लेख छापा है जिसमें कहा है कि भारत को यह समझना बंद कर देना चाहिए कि वो एक विश्वगुरु है और चीन उसका छात्र है. लेख में भारत के इस दावे को खारिज भी किया गया है कि मोटे अनाजों की उत्पति भारत में हुई थी. चीनी अखबार का कहना है कि मोटे अनाजों के अवशेष सबसे पहले चीन में खोजे गए थे.

ग्लोबल टाइम्स ने लेख की शुरुआत में लिखा, ‘सौ साल पहले चीन के सांस्कृतिक समुदाय की मशहूर हस्तियों ने प्रसिद्ध भारतीय कवि और लेखक टैगोर को चीन आने के लिए आमंत्रित किया था, जो चीन और भारत दोनों के सांस्कृतिक क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण घटना थी. टैगोर की चीन यात्रा दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच आपसी समझ और नए संबंध स्थापित करने की कोशिश का प्रतीक थी.’

आगे कहा गया कि ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना के तुरंत बाद चीन और भारत ने राजनयिक संबंध स्थापित किए और 1954 तक, दोनों देशों के बीच संबंध अपने चरम पर पहुंच गए थे जब एक संयुक्त बयान में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों (पंचतंत्र) की पुष्टि की गई. इससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक नया मॉडल तैयार हुआ था. हालांकि, इसके बाद से दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव का समय शुरू हुआ.

‘भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का उदय…’
लेख में आगे कहा गया कि पिछले कुछ सालों में राजनीतिक कारणों से दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.चीनी अखबार ने लिखा, ‘राजनीतिक संबंधों के प्रभाव के कारण सांस्कृतिक संबंध गंभीर रूप से बाधित हुए हैं, चीनी छात्रों को भारत में पढ़ने के लिए वीजा हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.’

चीनी अखबार का कहना है कि दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्ते में अलगाव की वजह भारत की घरेलू राजनीति में बदलाव है. भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का उदय और दक्षिणपंथी राजनीति ने इसे प्रभावित किया है. साथ ही अखबार ने सांस्कृतिक रिश्ते में दूरी की वजह अमेरिका को भी बताया है.

लेख में कहा गया कि अमेरिका ने अपनी इंडो-पैसिफिक नीति ने भारत-चीन के रिश्तों में दूरी ला दी है. चीनी अखबार लिखता है, ‘भारत के कई रणनीतिकारों ने इसे भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर के रूप में देखा और उनका मानना है कि भारत इस अवसर का लाभ उठाकर आर्थिक विकास कर सकता है और सुपर पावर बन सकता है. इसलिए उन्होंने सीमा संघर्षों को भड़काया, सीमा मुद्दों को तूल दिया और भारत-चीन रिश्तों की कीमत पर अमेरिका को खुश करने की कोशिश की.’

‘भारत खुद को विश्वगुरु समझता है लेकिन…’
चीनी अखबार ने अपनी शेखी बघारते हुए आगे लिखा है, ‘सांस्कृतिक रूप से मोदी सरकार खुद को विश्वगुरु, विश्व शिक्षक के रूप में देखती है. सामान्य सी सोच वाला भी यह जानता होगा ऐसे आदान-प्रदान दो-तरफा होने चाहिए. चीन के ऐतिहासिक अभिलेखों में यह स्पष्ट रूप से दर्ज है कि मास्टर जुआनजैंग (Master Xuanzang) ने एक बार ताओ ते चिंग का अनुवाद किया था और पूरे भारत में चीन के इस दर्शन को फैलाया था. कुछ चीनी विद्वानों का मानना ​​है कि भारतीय वास्तु की उत्पत्ति वास्तव में चीनी फेंगशुई से हुई है.’

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, ‘लेकिन भारतीय हमेशा ऐसा क्यों सोचते हैं कि भारत शिक्षक है और चीन छात्र है? मुझे लगता है कि इसके दो कारण हो सकते हैं: पहला- चीन अपने अधिकांश इतिहास के लिए खुला रहा है, और दूसरी सभ्यताओं से सीखने में भी विनम्र है; दूसरा, भारत में हमेशा वास्तविक ऐतिहासिक शोध और गंभीर ऐतिहासिक अभिलेखों की परंपरा का अभाव रहा है, और शिक्षक होने का आनंद लेने की परंपरा रही है.’

‘मोटे अनाज उगाने के सबूत सबसे पहले चीन में मिले’
ऑपिनियन पीस के लेखक शंघाई इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर साउथ ईस्ट एशिया स्टडीज के सीनियर फेलो लियू जोंग्यू कहते हैं कि पिछले साल, शंघाई (चीनी शहर) में भारत के महावाणिज्य दूतावास ने अंतरराष्ट्रीय मिलेट (Millet, मोटे अनाज) वर्ष 2023 मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें मुझे बुलाया गया था. महावाणिज्य दूत ने मुझे व्यक्तिगत रूप से मोटे अनाज की सात किस्मों का परिचय देते हुए खुशी जताई और कहा कि मोटे अनाज की उत्पत्ति भारत में हुई थी और 5,000 साल पहले हड़प्पा के खंडहरों में इसकी खोज की गई थी.’

लियू आगे कहते हैं कि यह बात सबको पता है कि मोटे अनाज की खेती सबसे पहले चीन में पीली नदी के बेसिन में की गई थी. हेबेई के सिशान और मंगोलिया के ज़िंगलोंगवा से 8,000 साल से अधिक पुराने मोटे अनाज के अवशेष मिले हैं. भारतीय मोटे अनाज के जिन सात किस्मों का जिक्र करते हैं, वो उत्तरी चीन में उगाई जाती हैं. ऐसे में किसी चीनी व्यक्ति के सामने यह दावा करना उचित नहीं है कि मोटे अनाज की उत्पति भारत में हुई थी.

लेख के अंत में सलाह दी गई है कि आने वाले समय में भारत-चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए चीन को केवल औपचारिकता निभाने के मकसद से भारत के साथ बातचीत नहीं करनी चाहिए बल्कि पूरे दिल से द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए और चीन के बारे में भारत की धारणा बदलनी चाहिए.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘चीनी विद्वानों को भारत के विभिन्न पहलुओं पर गहन शोध करना चाहिए, भारत के गलत विचारों और प्रथाओं की आलोचना और विरोध करना चाहिए. भारतीय विद्वानों को भी चीन के प्रति मोदी सरकार की संकीर्ण और अदूरदर्शी नीतियों की आलोचना करनी चाहिए.’

Latest articles

बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल बने भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष

भोपालबैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल बने भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष,बैतूल विधायक हेमंत विजय खंडेलवाल...

भेल में प्रशासनिक फेरबदल 

भेलभेल भोपाल यूनिट में प्रशासनिक फेरबदल किया गया है l विभागों में फेरबदल...

Fatty Liver Causes: फैटी लीवर से बचना है तो इन चीज़ों से करें परहेज़ हकीम सुलेमान ख़ान के ख़ास नुस्ख़े

Fatty Liver Causes: लिवर की बीमारियों के पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी खराब लाइफस्टाइल...

More like this

Adani Green Energy Plant: 15000 मेगावाट ऑपरेशनल क्षमता पार करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी

Adani Green Energy Plant: भारत की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी अदानी ग्रीन एनर्जी...

Trump Terminates Trade With Canada: सभी व्यापारिक संबंध तुरंत ख़त्म डिजिटल सर्विस टैक्स बना वजह

Trump Terminates Trade With Canada: सभी व्यापारिक संबंध तुरंत ख़त्म डिजिटल सर्विस टैक्स बना...

इज़राइल-ईरान युद्ध ख़त्म ट्रंप की चेतावनी परमाणु हथियार बनाए तो अंजाम होगा बुरा

इज़राइल-ईरान युद्ध ख़त्म ट्रंप की चेतावनी परमाणु हथियार बनाए तो अंजाम होगा बुरा,पिछले 12...