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इस बार नहीं इठला पाएगी दाल, किसानों ने बुआई बढ़ा दी, ज्यादा फसल से घटेगी कीमतें?

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नई दिल्ली:

लगातार 7 महीनों से 8% से ऊपर चल रही फूड इन्फ्लेशन से निपटने की कोशिश में जुटी सरकार के लिए किसानों ने राहत का बड़ा पैगाम भेजा है। खरीफ सीजन में किसानों ने सालभर पहले के मुकाबले 14% अधिक रकबे में फसलों की बुआई की है। सबसे बड़ी राहत दालों के मोर्चे पर है। दलहन का रकबा 54% बढ़ा है। करीब सालभर से दालों में इन्फ्लेशन डबल डिजिट में है। बुआई बढ़ने और अच्छी उपज होने पर इंफ्लेशन कंट्रोल में आने की उम्मीद है।

कृषि मंत्रालय ने सोमवार को खरीफ सीजन में फसलों की बुआई के रकबे की जानकारी दी। उसके मुताबिक, 378.72 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है। सालभर पहले के खरीफ सीजन में एरिया 331.9 लाख हेक्टेयर था। मंत्रालय ने बताया कि धान का रकबा 23.8 लाख हेक्टेयर से 19.4% बढ़कर 36.8 लाख हेक्टेयर हो गया। तिलहन का रकबा 51.9 लाख हेक्टेयर से 54.7% बढ़कर 80.3 लाख हेक्टेयर हो गया। कपास का रकबा 62.3 से 80.6 लाख हेक्टेयर हो गया। हालांकि ज्वार, बाजरा और रागी सहित मोटे अनाजों का रकबा घटा है। यह 82.1 लाख हेक्टेयर से घटकर 54.48 लाख हेक्टेयर पर आ गया।

मंत्रालय के मुताबिक, सबसे अधिक 54.8% की बढ़त दलहन के मामले में रही। इसका रकबा सालभर पहले के 23.8 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 36.8 लाख हेक्टेयर हो गया है। दलहन में सबसे अधिक रकबा अरहर का बढ़ा। सालभर पहले अरहर की बुआई 4.09 लाख हेक्टेयर में हुई थी। इस बार रकबा 20.82 लाख हेक्टेयर का है। इसी तरह, उड़द का रकबा 3.67 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 5.67 लाख हेक्टेयर हो गया है।

दालें सस्ती होने की उम्मीद
मई में रिटेल फूड इन्फ्लेशन 8.69% थी। इसमें भी दालों में 17.14% महंगाई थी, जो अप्रैल में 16.8% पर थी। दालों में ज्यादा महंगाई को देखते हुए सरकार ने 21 जून को अरहर, काबुली चना और चने पर 30 सितंबर तक के लिए स्टॉक लिमिट लगा दी थी। कन्ज्यूमर अफेयर्स सेक्रेटरी निधि खरे ने पिछले दिनों कहा था कि जुलाई के आखिरी हफ्ते से मोजांबिक, तंजानिया और मलावी सहित ईस्ट अफ्रीकी देशों से आयात की खेप आने लगेगी जिसके चलते अरहर, चना और उड़द दाल के रिटेल प्राइस घट सकते हैं।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 8 जुलाई को देश के विभिन्न हिस्सों में चना दाल का अधिकतम दाम 153 रुपये और न्यूनतम दाम 60 रुपये किलो था। अरहर का मैक्सिमम प्राइस 207 रुपये और मिनिमम प्राइस 124 रुपये किलो था। उड़द दाल और मूंग दाल 85 से 180 रुपये किलो तक बिक रही थीं। मसूर दाल का मैक्सिमम प्राइस 174 रुपये और मिनिमम प्राइस 72 रुपये किलो था।

उपायों का दिखा असर
खरीफ सीजन में कम उत्पादन के बाद रबी सीजन में दलहन का बुआई रकबा घटने से चिंता बढ़ी थी। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, रबी सीजन में दलहन का रकबा 162 लाख 66 हजार हेक्टेयर से घटकर 155 लाख 13 हजार हेक्टेयर पर आ गया। मौजूदा क्रॉप ईयर में 121 लाख टन उत्पादन का सरकारी अनुमान है।

सरकार ने सप्लाई बढ़ाने के लिए पीली मटर के ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की अवधि अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दी थी। पिछले साल दिसंबर से मिली इस छूट के बाद 15 लाख टन से अधिक पीली मटर का आयात हुआ है। उपभोक्ताओं को कम कीमत पर दाल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार पहले ही 60 रुपये किलो पर भारत दाल ब्रैंड के तहत चना दाल बेच रही है। पिछले दिनों उसने चने पर 66% की इंपोर्ट ड्यूटी भी अगले साल मार्च तक के लिए हटा दी थी ताकि इसकी सप्लाई बढ़ सके।

कन्ज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि दीर्घकालिक उपायों पर फोकस करने की रणनीति के तहत ‘धान जैसी ज्यादा पानी की खपत वाली फसलों की जगह पर चना, मसूर, उड़द और अरहर की खेती करने वाले किसानों से एग्रीमेंट करने को कहा जा रहा था। उनकी ऐसी पूरी फसल अगले 5 साल तक एमएसपी पर खरीदने की गारंटी भी दी गई।’ अधिकारी ने कहा कि इस प्री-रजिस्ट्रेशन का अच्छा नतीजा दिखा है और खरीफ सीजन में किसानों ने दलहन का रकबा रिकॉर्ड लेवल पर बढ़ाया है।

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