नई दिल्ली
इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने भारत को संकेत दिया कि वह सिंधु जल संधि पर बात करने को तैयार है। भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद 23 अप्रैल को इस संधि को रोक दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।’ भारत ने इससे पहले जनवरी में भी पाकिस्तान को इसकी शर्तों पर फिर से बातचीत करने के लिए नोटिस भेजा था। अब भारत में इसे पूरी तरह से खत्म करने की मांग हो रही है। वहीं, पाकिस्तान धमकी दे रहा है कि पानी की सप्लाई में किसी भी रुकावट को युद्ध माना जाएगा। इन सबके बीच, इस संधि के बारे में बहुत कुछ ऐसा है, जिसके बारे में आम लोगों को ज्या नहीं पता है। मसलन, भारत की ओर से तो सिंधु जल संधि पर ब्रेक लगने के बाद इसके पानी पर नियंत्रण होने की बातें कही जा रही हैं, लेकिन एक चिंता यह भी है कि इसका उद्गम स्थल तो तिब्बत में है, जो अभी चीन के कब्जे में है। जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर में चीन ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती निभाई है, सवाल है कि वह इस मित्रता को बरकरार रखने के लिए कहां तक जा सकता है।
संधि रुकने का मतलब, पहले जैसा सामान्य नहीं है
इंडियन एक्सप्रेस ने एक एक्सपर्ट से बातचीत के आधार पर इन सारे पहलुओं पर एक रिपोर्ट दी है। इसके अनुसार सिंधु जल संधि (IWT) को ठंडे बस्ते में रखने का मतलब पाकिस्तान को पानी रोकना नहीं है। इसका मतलब है कि भारत संधि के पश्चिमी नदियों के प्रावधान पर ध्यान देगा और इसे बेहतर बनाएगा। वैसे भी भारत के पास पाकिस्तान का पानी रोकने की अभी क्षमता नहीं है। यानी इसके लिए डैम तैयार नहीं हैं। अलबत्ता, वह मौजूदा बांधों से गाद निकालने का काम कर सकता है। संधि रोकने की बात कहकर भारत ने पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश दिया है कि अब सब कुछ पहले की तरह सामान्य नहीं है। अभी तक भारत ने एक जिम्मेदार ऊपरी तटवर्ती देश की भूमिका निभाई है। भारत ने जो भी पनबिजली परियोजनाएं शुरू की हैं, वे संधि में बताए गए नियमों के अनुसार ही हुई हैं। अब भारत यह साफ कर रहा है कि अगर संधि को आगे बढ़ाना है, तो नई शर्तें लगानी पड़ेंगी।
पाकिस्तान की अड़ंगा डालने वाली नीति पर ब्रेक
ऐसे में सवाल उठता है कि जब जब संधि की शर्तों पर फिर से बातचीत होगी तो भारत किस तरह का बदलाव चाहेगा। एक्सपर्ट के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें पहली है संधि में शिकायत निवारण तंत्र। संधि के अनुच्छेद 9 में तीन स्तर का तंत्र है। इसमें विवादों को पहले भारत और पाकिस्तान के सिंधु आयुक्तों के स्तर पर उठाया जाता है। फिर इसे विश्व बैंक की ओर से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के विचार के लिए दिया जाता है; और अंत में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (International Court of Arbitration CoA) में भेजा जाता है। पाकिस्तान ने लंबे समय से इस तीन-स्तरीय तंत्र का इस्तेमाल भारत के बांधों और पनबिजली परियोजनाओं में देरी करने के लिए किया है। पाकिस्तान ने भारत की परियोजनाओं को रोकने के लिए बार-बार संधि के अनुच्छेद 9 का दुरुपयोग किया है। निश्चित रूप से भारत अब कभी नहीं चाहेगा कि इसकी परियोजनाएं पाकिस्तान तय करे।
तिब्बत में चीन क्यों नहीं रोकेगा सिंधु का पानी
अब सबसे महत्वपूर्ण बात। तथ्य यह है कि सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है। ऐसे में भारत के लिए यह कितनी बड़ी चिंता की बात है। क्योंकि,हाल में हम देख ही चुके हैं कि आतंकवाद का विरोध करके भी चीन ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की हर संभव मदद की कोशिश की। इसपर नई दिल्ली के मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के सीनियर फेलो उत्तम कुमार सिन्हा का कहना है, ‘सैटेलाइट से मिली तस्वीरों और अन्य जानकारी के अनुसार चीन अभी तक सिंधु नदी पर बांध नहीं बना रहा है। पाकिस्तान दुनिया के सबसे खराब जल प्रबंधकों में से एक है। वहीं, चीन बांध बनाने में बहुत ही कुशल है। भारत को परेशान करने के लिए सिंधु नदी पर बांध बनाना शायद उसकी योजना में नहीं है, क्योंकि इससे उसे कोई घरेलू फायदा नहीं होगा।’