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Wednesday, December 31, 2025
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बुद्ध से युद्ध के रास्ते पर जापान, भूल गया हिरोशिमा-नागासाकी, खरीदेगा 35000 करोड़ डॉलर के हथियार

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तोक्यो

जापान ने शांति के रास्ते को छोड़ अब युद्ध की तैयारी करने का ऐलान किया है। चीन और उत्तर कोरिया से लगातार बढ़ते खतरों ने जापान की नींद उड़ा रखी है। इस कारण जापानी सरकार ने 35000 करोड़ डॉलर (लगभग 2647000 करोड़ रुपये) के हथियार खरीदने का ऐलान किया है। इस खरीद से जापानी सेना चीन पर हमला करने में सक्षम मिसाइलों से लैस होगी। इसके अलावा जापान क्षेत्रीय तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई स्थितियों में निरंतर युद्ध के लिए तैयार हो सकेगा। द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद जापान ने अपनी सैन्य बजट को काफी कम कर दिया था। जापान ने अपनी रक्षा के लिए अमेरिका से समझौता किया था। जापानी सरकार ने खुद को हमेशा के लिए गैर परमाणु शक्ति संपन्न देश बने रहने का वादा भी किया था।

जापान को कौन सा डर सता रहा
जापानी सरकार को चिंता है कि रूस ने एक मिसाल कायम की है, जो चीन को ताइवान पर हमला करने, जापानी द्वीपों पर कब्जे की धमकी देने और अडवांस सेमीकंडक्टर की सप्लाई लाइन को बंद करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। जापान को यह भी आशंका है कि चीन, खाड़ी देशों से तेल की आपूर्ति करने वाले महत्वपूर्ण समुद्री रास्ते को भी बंद कर सकता है। इससे जापान की न सिर्फ अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि आम जनजीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। जापान यह नहीं चाहता कि चीन को दक्षिण चीन सागर पर कब्जे का मौका मिले। जापान व्यापार के लिए काफी हद तक पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर पर निर्भर है। पूर्वी चीन सागर में कई द्वीपों को लेकर भी जापान और चीन में विवाद है।

सेना को मान्यता नहीं देता जापानी संविधान
जापान का द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का संविधान आधिकारिक तौर पर सेना को मान्यता नहीं देता है। संविधान में सेना को नाममात्र की शक्तियां दी गई हैं। इन्हें सिर्फ आत्मरक्षा की क्षमताओं से ली लैस करने की बात की गई है। ऐसे में जापान का यह कदम उनके संविधान में बड़े बदलाव की ओर भी इशारा करता है। अपनी पंचवर्षीय योजना और संशोधित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में जापानी सरकार ने कहा कि वह स्पेयर पार्ट्स और अन्य गोला-बारूद का स्टॉक रखेगी। सेना की सप्लाई लाइन को मजबूत किया जाएगा और साइबर वॉरफेयर की क्षमताएं विकसित की जाएंगी। रणनीति में अमेरिका और दूसरे समान विचारधारा वाले देशों के साथ अधिक नजदीक संबंध स्थापित करने पर जोर दिया गया है।

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