बर्मिघम
भारतीय महिला हॉकी टीम ने 16 साल बाद कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीता है। कप्तान सविता पूनिया इस जीत की असल हीरो रहीं। ऑस्ट्रेलिया के खिला स्टॉपवॉच विवाद से उबरते हुए रविवार को डिफेंडिंग चैंपियन न्यूजीलैंड को शूट आउट में 2-1 से हराकर ब्रॉन्ज मेडल जीतना इतना आसान नहीं था। शूट आउट तक गए मैच में गोली कप्तान सविता पूनिया ने जबरदस्त धैर्य दिखाया।
बचपन के टीचर ने पहचानी प्रतिभा
सविता पूनिया हरियाणा के सिरसा के गांव जोधकां की रहने वालीं हैं। साल 2003 में जब वह छठी कक्षा में थीं तो उनके टीचर ने खेलते देखा। स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ सविता के पिता महेंद्र पूनिया से इस बात का जिक्र किया। यहीं से सविता को तराशने का काम शुरू हुआ। सुविधाओं का भी अभाव था, लेकिन इसके बावजूद सविता की मेहनत जारी रही।
खेतों की मेढ़ पर दौड़ीं
सविता बचपन से ही शर्मीले स्वभाव की है। घर से दूर रहने की आदत नहीं थी। इसी कारण शुरू में परेशान रही, लेकिन नियमों की पक्की होने के चलते सारी बाधाएं पार करतीं गईं। गांव में सुविधाओं की कमी थी तो वह खेतों की मेढ़ पर दौड़कर फिटनेस बनातीं। एक बार टीचर ने सविता से मजाक में कहा था कि अच्छा खेलोगी तो विदेश जाओगी। जिस पर पिता ने कहा था कि गांव की बेटियों को विदेश कौन लेकर जाएगा। आज यही बेटी सात समंदर पार जाकर देश के लिए मेडल ला रही है।
हॉकी छोड़ने का बना लिया था मन
सविता के लिए शुरुआती दो साल बहुत मुश्किल थे। इस दौरान कई बार खेल छोड़ने का मन किया। पिता ने तो खेल छोड़ने का ऑफर तक दे दिया था, लेकिन रात भर सोचने के बाद सुबह वह प्रैक्टिस के लिए अपनी स्टिक खोजने लगी। 2016 ओलिंपिक, 2021 तोक्यो ओलिंपिक में खेल चुकीं इस बेटी को साल 2018 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।