देश को एक रखने में कारगर रही है जाति व्यवस्था- आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य की राय

नई दिल्ली

बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर ने हाल ही में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की जाति पूछी थी और इसे लेकर तब विवाद भी हुआ था। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के ताजा अंक में जाति व्यवस्था को सही ठहराने की कोशिश की गई है। पांचजन्य ने अपने संपादकीय में जाति व्यवस्था को भारतीय समाज को “एकजुट रखने की वजह” बताया है। पांचजन्य ने कहा है कि मुगल शासक इसे नहीं समझ सके थे और अंग्रेज इसे भारत पर अपने आक्रमण के रास्ते में एक रुकावट समझते थे।

पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर की ओर से लिखे गए संपादकीय में कहा गया है कि जाति व्यवस्था एक श्रृंखला थी जिसने भारत के अलग-अलग वर्गों को उनके पेशे और परंपराओं के अलग-अलग होने के बाद भी उन्हें जोड़े रखा। औद्योगिक क्रांति के बाद पूंजीपतियों ने जाति व्यवस्था को भारत के पहरेदार के रूप में देखा था।हितेश शंकर ने संपादकीय में तर्क दिया है कि जाति व्यवस्था हमेशा आक्रमणकारियों के निशाने पर थी। मुगल शासकों ने तलवार के दम पर इसे निशाना बनाया और ईसाई मिशनरियों ने सेवा और सुधारों की आड़ में ऐसा किया।

संपादकीय कहता है कि जाति के रूप में भारत के समाज ने सिर्फ एक चीज को समझा है कि जाति से दगा यानी देश से दगा। मिशनरियों ने भारत को एकजुट करने वाले इस समीकरण को मुगलों से बेहतर ढंग से समझा। संपादकीय कहता है कि अगर भारत और इसके स्वाभिमान को तोड़ना है तो सबसे पहले जाति व्यवस्था को बंधन और जंजीर बताकर जाति की एकता के सूत्र को तोड़ दिया जाए। संपादकीय में कहा गया है कि मिशनरियों ने जाति व्यवस्था को जितना समझा अंग्रेजों ने उसे अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के लिए अपनाया।

पांचजन्य द्वारा जाति व्यवस्था को सही ठहराया जाना ऐसे वक्त में बहुत महत्वपूर्ण है जब आरएसएस को यह समझाने में काफी मुश्किल हो रही है कि वह वंचित वर्गों को दिए जा रहे आरक्षण के खिलाफ नहीं है। जबकि आरएसएस ने समय-समय पर जाति व्यवस्था की जड़ों को वर्ण व्यवस्था में खोजने की कोशिश की है।

आरक्षण के समर्थन में है संघ
आरएसएस सामान्य रूप से जातिगत भेदभाव के बारे में माफी की बात कहता रहा है। आरएसएस ने अपनी स्थापना के बाद से ही अस्पृश्यता यानी अनटचैबिलिटी के खिलाफ अभियान भी चलाया है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार कहा है कि जातिगत भेदभाव भारतीय समाज के लिए अभिशाप है और इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। संघ से जुड़े हुए लोग कई बार यह कहने में गर्व महसूस करते हैं कि वह अपने सहयोगियों की जाति नहीं जानते। पिछले साल मोहन भागवत ने कहा था कि नीची जातियों ने 2000 साल तक जिस तरह का भेदभाव झेला है उसकी भरपाई के लिए अगर आरक्षण को 200 साल तक भी जारी रखा जाता है तो संघ इसका समर्थन करेगा।

हितेश शंकर ने अपने संपादकीय में तर्क दिया है कि पीढ़ी दर पीढ़ी जातियों को मिला हुआ यह एक ऐसा कौशल था जिसकी वजह से बंगाल के भारतीय बुनकर अपने काम में इतने शानदार थे कि मैनचेस्टर की मिलें इतनी बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद नहीं बना सकती थीं।

जातिगत समूहों को किया गया अपमानित
संपादकीय में कहा गया है कि भारत के उद्योगों को बर्बाद करने के अलावा आक्रमणकारियों ने भारत की पहचान को बदलने के लिए धर्मांतरण पर भी फोकस किया। लेकिन जब जातिगत समूह इसके आगे नहीं झुके तो उन्हें अपमानित किया गया। ये वह लोग थे जिन्होंने एक स्वाभिमानी समुदाय को सिर पर मानव मल ढोने के लिए मजबूर किया था और इससे पहले हिंदुस्तान में ऐसा होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हितेश शंकर ने लिखा है कि जो आंखें भारत की पीढ़ियों के टैलेंट को देखकर आहत होती हैं, वहीं आंखें हिंदू धर्म की विविधताओं, परंपराओं और रीति-रिवाजों को खत्म करने का सपना देखती हैं।

कांग्रेस पर किया हमला
पांचजन्य के संपादकीय में कांग्रेस पर भी हमला किया गया है। इसमें कहा गया है कि हिंदू जीवन जिसमें गरिमा, नैतिकता, जिम्मेदारी और भाईचारा शामिल है, यह सब कुछ जाति के आसपास ही घूमता है और मिशनरी इसे नहीं समझ सके। मिशनरियों ने जाति को अपने धर्मांतरण कार्यक्रम में एक रुकावट के रूप में देखा। कांग्रेस भी इसे हिंदू एकता में कांटे के रूप में देखती है।

कांग्रेस अंग्रेजों की तर्ज पर जाति के आधार पर लोकसभा की सीटों का बंटवारा चाहती है और ऐसा करके वह देश में बंटवारे को बढ़ावा देना चाहती है और इसीलिए वह जाति जनगणना की बात करती है। यहां यह ध्यान रखना होगा कि भाजपा ने कभी भी खुलकर जाति जनगणना का विरोध नहीं किया है। अनुराग ठाकुर के द्वारा जाति को लेकर राहुल गांधी पर की गई टिप्पणी के बारे में भी हितेश शंकर ने संपादकीय में अपनी बात कही है। उन्होंने कहा है कि भारत की जाति क्या है, समाज और इतिहास की तरफ से इस सवाल का जवाब आता है कि यह हिंदू है।

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