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एमजे अकबर की वापसी: पत्रकार से राजनेता और अब वैश्विक मंच पर बनेंगे भारत की आवाज, पढ़िए इनकी कहानी

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नई दिल्ली

भारतीय पत्रकारिता और राजनीति के दिग्गज एमजे अकबर एक बार फिर चर्चा में हैं। कभी अपनी लेखनी से देश-दुनिया को प्रभावित करने वाले और कभी मीटू विवादों में फंसे अकबर अब नरेंद्र मोदी सरकार की वैश्विक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा बनकर उभरे हैं। 74 साल के अकबर को सरकार ने सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक में शामिल किया है, जो पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद के खिलाफ भारत का पक्ष वैश्विक समुदाय के सामने रखेंगे। यह उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक वापसी का एक मजबूत संकेत है।

पत्रकारिता का सुनहरा दौर
एमजे अकबर का नाम भारतीय पत्रकारिता में एक युग की तरह है। 1970 के दशक में उन्होंने संडे और एशिया जैसे प्रकाशनों में अपनी लेखनी से धूम मचाई। बाद में द टेलीग्राफ और एशियन एज जैसे अखबारों के संपादक के रूप में उन्होंने पत्रकारिता को नए आयाम दिए। उनकी किताबें, जैसे नेहरू: द मेकिंग ऑफ इंडिया और कश्मीर: बिहाइंड द वेल, इतिहास और राजनीति के गहन विश्लेषण के लिए जानी जाती हैं।

राजनीतिक उतार-चढ़ाव
1989 में अकबर ने बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद के रूप में राजनीति में कदम रखा, लेकिन 1991 में वह यह सीट हार गए। 2014 में बीजेपी में शामिल होने के बाद उनकी राजनीतिक पारी ने नया मोड़ लिया। 2015 में राज्यसभा सांसद बनने के बाद 2016 में वह मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारत की कूटनीति को वैश्विक मंच पर मजबूत करने में योगदान दिया।

मीटू विवाद और इस्तीफा
2018 में मीटू विवाद ने अकबर के करियर को तगड़ा झटका दिया। कई पूर्व महिला सहकर्मियों ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए, जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अकबर ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने रमानी को बरी कर दिया, जिसके खिलाफ अकबर ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। इस विवाद ने उनकी सार्वजनिक छवि को प्रभावित किया, और वह कुछ समय के लिए राजनीतिक हाशिए पर चले गए।

वैश्विक मंच पर वापसी
अब अकबर एक नए रोल में सामने आए हैं। वह बीजेपी नेता रवि शंकर प्रसाद के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे, जो यूरोप में यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली और डेनमार्क जैसे देशों में भारत का पक्ष रखेगा। यह प्रतिनिधिमंडल पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को वैश्विक समर्थन दिलाने के लिए काम करेगा। अकबर की कूटनीतिक समझ इस मिशन में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

पाकिस्तान पर तीखा हमला
अकबर ने हाल ही में अपने लेखों और एक्स पोस्ट में पाकिस्तान की आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियों की कड़ी निंदा की है। उनकी 2012 की किताब टिंडरबॉक्स: द पास्ट एंड फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान में उन्होंने पाकिस्तान के ऐतिहासिक और वैचारिक ढांचे का विश्लेषण किया था। हाल ही में एक एक्स पोस्ट में उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया है।”

अकबर की इस वापसी ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह उनकी राजनीति में रीएंट्री है। उनकी कूटनीतिक समझ और वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने की क्षमता उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त बनाती है। हालांकि, मीटू विवाद का साया अभी भी उनके करियर पर मंडरा रहा है। आने वाला समय बताएगा कि यह नई पारी अकबर को कहां ले जाती है।

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